हिसाब किताब तो बहुत कुछ करना है तुमसे हमे.ं
गोरे साहबों ने लुट लिया त जो जमीन हमारी
सोचते है
अभी तृम्हारे अमानत में है
इसलिए कि उस समय बोल नर्ही सकेते थे हम
जो बोल सकते थे वे बोले नही
बोलने के हैसियत मेंं तो शायद अभी भी हम नही हैं
बोल कर भी आखिर क्या करेंगे
तुम हमारी बात सुनोगे नहीं
तुम्हे हमारी बात सुनने के लिए मजबूर कर सकतै नहीं
खैर छोड दो यिन बातों को
करते रहेगें बात बक्त आने पर
खुलकर तुम से
आमने सामने बैठ कर
आँख में आँख डाल कर.
आखिर हमें अपना हिसाब किताब साफ करनो ही है
आज नही त कल
किसी एक दिन
भला कैसे हम अपना इतिहास भूल सकते हैं
कैसे हम अपना भूगोल भूल सकेते हैं
फर्ज करो भुल भी सकता हैं हम
भुल भी जायेंगे हम
फिर भी हमारे अकेले भू्रल जाने से क्या होगा
आने बाली पीढी तो भूल नहीं पायगी
भु्ल नहीं जायेगी
भूल पी कैसे पायगी
भुल भी कैसे जायेगी
अपने पूर्वजोृं के खून से रंगे
अपनी मिट्टी की कथा
गोरे साहवों से प्राप्त विरासतको
तूँे काले साहेबोंं न बखुबी निभाया है
उसे आगे बढाया है
छिन लिया है तुमने
दिनदहोडे
्और भी हमारी जमीनें.
सुस्ता यही बताता है
महेशपुर यही बताता है
दिन रात
पहरे दे रहे थे जो जंगे पिलर
उसे भी तुने उखाड फेंका है
रातो. रात गायब किया है
लेनी तो उसकी भी हिसाब किताब है
लेकिन इस बक्त
हम समझते हैं
सम्पूर्ण शक्ति लगाएर
हमें बोलना होगा
कालापानी हमारा है
कालापानी हमारा हो के रहेगा
लिपुलेक हमारा है
लिपुलेक हमारा हो के रहेगा
लिम्पियाधुरा हमारा है
लिम्पियाधुरा हमारा हो के रहेगा
दृुनियाँ की कोई शक्ति इन्हे
हम से अपहरण नहीं कर सकती
हम से जुदा नहीं कर सकती
दुसरे की भूमि कै लिए जान कुर्वानी करने बाले हम गोरखे
दुसरो. के बिजय के लिए जान देने वाले हम गोरखे
मत सोचना हमने जमीन लिए लडेगें नहीं
मरेगें नहीं
कान खोल कर सुनलेो
न हम कभी गुलाम थे
न हमी कभी गुलाम रहेगेंं
हमें द्ेुसरों के एक इंच जमीन भी नही. चाहिए
कोई हमारा एक इंच जमीन छिन ले
यह हमें मंजुर नहीं
यह हम बरदास्त करेंगे नहीं ।
५–६–२०७७
२१–९–२०२०
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